दुष्यंत पुत्र भरत का जीवन परिचय और कहानी

दुष्यंत पुत्र भरत-हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं इन महापुरुषों ने अपने पर बचपन में ही ऐसे कार्य किए जिन्हें देखकर उनके महान होने का आभास होने लगा था ऐसे ही एक वीर प्रताप साहसी बालक भरत थे।

दुष्यंत-पुत्र-भरत-की-कहानी

होनहार बिरवान के होत चिकने पात

इस कहावत का आशय यह है कि वीर ज्ञानी और गुड़ी व्यक्ति की झलक उसके बचपन से ही दिखाई देने लगती है।

दुष्यंत पुत्र भरत की कहानी

भरत हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र थे। राजा दुष्यंत एक बार शिकार खेलते हुए कण्व ऋषि के आश्रम पहुंचे वहां शकुंतला को देखकर वह उस पर मोहित हो गए और शकुंतला से आश्रम में ही गंधर्व विवाह कर लिया। आश्रम में रिसीव करने के ना होने के कारण राजा दुष्यंत शकुंतला को अपने साथ नहीं ले जा सके। उन्होंने शकुंतला को एक अंगूठी दे दी जो उनके विवाह की निशानी थी।

एक दिन शकुंतला अपनी सहेलियों के साथ बैठी दुष्यंत के बारे में सोच रही थी। उसी समय दुर्वासा ऋषि आश्रम में आए शकुंतला दुष्यंत की याद में इतनी अधिक खोई हुई थी कि उसे दुर्वासा ऋषि के आने का पता ही नहीं चला। शकुंतला ने उनका आदर सत्कार नहीं किया जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को श्राप दिया कि जिसकी याद में खोए रहने के कारण तूने मेरा सम्मान नहीं किया वह तुझको भूल जाएगा।

शकुंतला की सखियों ने क्रोधित ऋषि से अनजाने में उससे हुई अपराध को छमा मांगने के लिए निवेदन किया ऋषि ने कहा मेरे श्राप का प्रभाव समाप्त तो नहीं हो सकता किंतु दुष्यंत द्वारा दी गई अंगूठी को दिखाने से उन्हें अपने विवाह का स्मरण हो जाएगा।

कण्व ऋषि जब आश्रम वापस आए तो उन्हें शकुंतला के गंधर्व विवाह का समाचार मिला उन्होंने एक गृहस्थ की हाथी अपनी पुत्री को पति के पास जाने के लिए विदा किया शकुंतला के पास राजा द्वारा दी गई हूं ठीक हो गई थी शराब के प्रभाव से राजा दुष्यंत अपने विवाह की घटना भूल चुके थे वह शकुंतला को पहचान नहीं सके निराश शकुंतला को उसकी मां मेनका के कश्यप ऋषि के आश्रम में रखा उस समय वह गर्भवती थी उसी आश्रम में दुष्यंत पुत्र भरत का जन्म हुआ।

भरत बचपन से ही वीर और साहसी थे वह उनके हिंसक पशुओं के साथ खेलते और सिंह के बच्चों को पकड़कर उनके दांत गिनते थे उनके इन निर्भीक कार्यों से आश्रम वशी उन्हें सर्वदमन कह कर पुकारते थे।

समय का चक्र ऐसा चला कि राजा को अंगूठी मिल गई जो उन्होंने शकुंतला को विवाह के प्रतीक के रूप में दी थी अंगूठी देखते ही उनको विवाह की याद ताजा हो गई।

शकुंतला की खोज में भटकते हुए एक दिन वह कश्यप ऋषि के आश्रम में पहुंच गए जहां शकुंतला रहती थी उन्होंने बालक भरत को शेर के बच्चों के साथ खेलते देखा।

राजा दुष्यंत ने ऐसे साहसी बालक को पहले कभी नहीं देखा था बालक के चेहरे पर अद्भुत तेज था दुष्यंत ने बालक भारत को उसका परिचय पहुंचा भारत ने अपना और अपनी मां का नाम बता दिय।

दुष्यंत ने भारत का परिचय जानकर उसे गले से लगा लिया और शकुंतला के पास गए अपने पुत्र एवं पत्नी को लेकर वह हसनापुर वापस लौट आए हस्तिनापुर में भारत की शिक्षा दीक्षा हुई दुष्यंत के बाद भरत राजा हुए उन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार संपूर्ण आर्यावर्त उत्तरी और मध्य भारत में कर लिया अश्वमेध यज्ञ कर उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की चक्रवर्ती सम्राट भरत ने राज्य में सुदृढ़ न्याय व्यवस्था और सामाजिक एकता स्थापित की।

उन्होंने सुविधा के लिए अपने शासन को विभिन्न विभागों में बैठकर प्रशासन में नियंत्रण स्थापित किया भारत की शासन प्रणाली से उनकी कीर्ति सारे संसार में फैल गई।

सिंधु के साथ खेलने वाले इस भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

भरत किसके पुत्र थे

भरत हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र थे।

राजा दुष्यंत के पुत्र का क्या नाम था

राजा दुष्यंत के पुत्र का नाम भरत था

राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र का क्या नाम था

राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र का नाम भरत था

हमारे देश का नाम भारत किसके नाम पर पड़ा

सिंधु के साथ खेलने वाले इस भारत के नाम पर ही भारत देश का नाम पड़ा

शकुंतला को दुष्यंत क्यों नहीं पहचान सके

क्योंकि दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को श्राप दिया था कि जिसकी याद में तुम खोई हो वह तुम्हें भूल जाएगा।

दुष्यंत पुत्र भरत के कितने पुत्र थे

भरत का विवाह 3 कन्याओं से हुआ जिन से 9 पुत्रों की प्राप्ति हुई।

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1 thought on “दुष्यंत पुत्र भरत का जीवन परिचय और कहानी”

  1. Great post however , I was wondering if you could write a litte more on this
    subject? I’d be very grateful if you could elaborate a little bit further.

    Bless you!

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