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भारतेंदु हरिश्चंद्र जीवन परिचय (bhartendu Harishchand jivan Parichay)

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय आज हम आपको इस जानकारी में बताने वाले है। इनका जन्म कब हुआ था और कहा पर हुआ था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक जीवन परिचय की पूरी जानकारी, जन्म,मृत्यु, जन्म स्थान, रचनाए, शैली,भाषा क्या क्या है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्यिक जीवन परिचय एवं कृतियाँ

जीवन परिचय-भारदेन्दु हरीशचंद का जन्म भद्रपद शुक्ल 5 सं0 1907 वि0 (सन 1850 ई0) में काशी के वैश्य परिवार में हुआ। इनके पिता गोपाल चंद्र (उपनाम गिरधरदास) बडे़ काव्य-रसिक व्यक्ति थे ।भारतेन्दु जी जन्मजात कवि थे।पाँच वर्ष की आयु में ही उन्होंने निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और उनसे सुकवि बनने का आशीर्वाद प्राप्त किया

भारतेंदु-हरिश्चंद्र-जीवन-परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र जीवन परिचय

स्मरणीय संकेत

  • जन्म– सन 1850 ई०
  • मृत्यु– सन 1885 ई०
  • पिता– गोपाल चंद उपनाम गिरधारी
  • जन्म स्थान- काशी
  • शिक्षा– घर पर ही हिंदी, संस्कृति, अंग्रेजी, बंगाल का अध्ययन
  • भाषा– पद्य में ब्रजभाषा, गद्य में खड़ी बोली
  • शैली– परिचयात्मक, विवेचनात्मक, भावात्मक
  • रचनायें– काव्य, नाटक, इतिहास, निबंध आदि
  • अन्य बातें– बहुमुखी प्रतिभा, 5 वर्ष की आयु में दोहा रचा, 18 की आयु में साहित्यिक रचना, पत्रकार तथा अनेक संस्थाओं की स्थापना।

Bhartendu Harishchand साहित्यिक परिचय

साहित्यिक परिचय – बचपन में ही माता- पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण भारतेन्दु को शिक्षा का अनुकूल वातावरण नहीं मिल। विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने घर पर ही हिंदी ,संस्कृत, अंग्रेजी तथा बंगाल का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 18 वर्ष कि अवस्था में ही अपने साहित्य रचना आरम्भ कर दी थी।

आपने पेनी रीडिंग तथा तदीय समाज नाम कि दो संस्थाएँ चलायी तथा एक स्कूल कोला। अपने हरीश चंद्र मैगजीन तथा ‘कवि वचन सुधा’दो पत्रिका भी निकाली।आपकी बहुमुखी प्रतिभा को देखकर समकालीन सभी लेखक इनसे दिशा निर्देश प्राप्त करते थे सामाजिक राजनीतिक एवं राष्ट्रीय भावों पर आधारित रचनाओं के माध्यम से उन्होंने एक नवीन चेतना  उत्पन्न की।उनकी मौलिक प्रतिभा से प्रभावित होकर तत्कालीन पत्रकारों ने सन्  1880 मेंं इन्हें भारतेंदु हरिश्चंद्र की  उपाधि से हेलो सम्मानित किया ।

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी दीन-दुःखियों की सेवा , देश-सेवा तथा साहित्य सेवा पर खूब खर्च करते थे ।कई पुस्तकालयों और नाट्यशालाओं की भी उन्होंने स्थापना की और काफी वयय करके उन्हें चलाया धन को पानी की तरह बहाने के कारण जीवन का  अंतिम समय कष्ट मेंं बिताना पड़ा।  अंत मेंं क्षय रोग से ग्रस्त होकर केवल 35 वर्ष की अलपायु में सं० 1942 वि०(सन् 1885 ई०) में परलोकवासी हो गये

भाषा शैली

भारतेन्दु हरिश्चंद्र गद्य भाषा के 2 रूप है।

सरल व्यवहारिक भाषा तथा सुद्ध खड़ी बोली हिंदी। इनमे पहले प्रकार की भाषा मे अरबी, फारशी तथा अंग्रेजी आदि के आम प्रचलित शब्दो का प्रयोग हुआ है। जबकि दूसरे प्रकार की सुद्ध भाषा मे संस्कृति के तत्सम तथा तदभव सब्दो को ही मुख्य रूप से स्थान दिया गया है।

रचनायें-

भरतेेंदु जी नेे अपनी थोड़ी आयुु में
बहुत कुछ लिखा उनकी प्रमुख रचनायें निम्नलिखित है-

1.नाटक

सत्य हरिश्चन्द्र, चन्द्रावली, भारत दुर्दसा, नीलदेवी, अंधेर नगरी, बैदिक हिंसा हिंसा न भवति, विसस्य, सती प्रथा, प्रेम योगनी आदि।

2.अनुदित नाटक

मुद्राक्षय, धनंजय विजय, रत्नावली, कर्पूरमंजरी, विदासुन्दर, भारत जननी, दुर्लभ बंधु आदि।

3.इतिहास ग्रंथ

महाराष्ट्र देश का इतिहास, दिल्ली दरबार दर्पण, अग्रवालों की उत्पत्ति आदि।

4.निबंध तथा आख्यान– सुलोचना, मदालसा, लीलावती, परिहास पंचक आदि।
5.काव्य ग्रंथ– प्रेम फुलवारी, प्रेम प्रलाप, विजयनी विजय, बैजन्ती, भारत वीणा, सतसई माधुरी, प्रेम मलिका, प्रेम तरंग, प्रेम सरोवर आदि।
6.कथा साहित्य– हमीर हठ, मदलसोपाख्यान आदि।
7.संपादन– कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगज़ीन, हरिश्चन्द चंद्रिका आदि।

अन्तिम शब्द

आशा करते है कि आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र की साहित्यिक जानकारी के बारे में, ये हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार है। इन्होंने बहुत सारे पुस्तक और नाटक लिखे है। इसी प्रकार से हिंदी जानकारी को प्राप्त करने के लिए Mybestindia को हमेशा Visit करते रहे। और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और ट्विटर पर भी मीबेस्टिंडिया को फॉलो कर सकत है।

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