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श्रवण कुमार की कथा का विस्तृत वर्णन Sharvan Kumar Story in Hindi

श्रवण कुमार की कहानी- प्राचीन कथाएं हमारे लिए अनुकरणीय होती हैं। उनके पढ़ने सुनने से और उन में वर्णित सदाचार का अनुकरण करने से हम अपने जीवन को अच्छा बनाते हैं ऐसे ही एक कथा है श्रवण कुमार की। तो आज की इस जानकारी में हम श्रवण कुमार की पूरी कहानी आपको बताने वाले हैं।

श्रवण कुमार की कहानी

प्राचीन कथाएँ हमारे लिए अनुकरणीय होती हैं। उनके पढ़ने-सुनने से और उनमें वर्णितसदाचार का अनुकरण करने से हम अपने जीवन को अच्छा बनाते हैं। ऐसी ही एक कथाहै ‘श्रवण कुमार’ की। महात्मा गाँधी के ऊपर तो इस कथा का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। वे लिखते हैं।

पिताजी की खरीदी हुई एक किताब पर मेरी नजर पड़ी। वह थी ‘श्रवण-पितृ-भक्त'(नाटक)। उसे पढ़ने की इच्छा हुई और मैं उसे बड़े चाव से पढ़ गया। उन दिनों काठ के बॉक्स में विशेष प्रकार के शीशे से चित्र दिखानेवाले भी दरवाजे-दरवाजे फिरा करते थे। उनसे मैंने श्रवण के अपने माता-पिता को काँवर में बैठाकर यात्रा के लिए ले जाने का चित्र देखा। दोनों चीजों का मुझ पर गहरा असर पड़ा। मुझे भी श्रवण के समान होना चाहिए, यह भाव मन में उठने लगा।

श्रवण कुमार की पूरी कहानी (Sharvan Kumar Story in Hindi)

श्रवण की मृत्यु पर उसके माता-पिता का विलाप आज भी मुझे याद है ।”वही ‘श्रवण कुमार की कथा’ नाटक के रूप में नीचे प्रस्तुत है।

नेपथ्य से :(अयोध्या के महाराज दशरथ के समय में एक मुनि थे। उनका नाम था – शान्त्वन। वे अंधे थे। उनकी पत्नी भी अंधी थीं। उनके एक पुत्र था।

उसका नाम था – श्रवण कुमार। वह अपने माता-पिता,का परम भक्त था। वह उनकी बड़ी सेवा करता था। एक दिन की बात है- पिता ने बेटे से कहा-)

शान्त्वन– बेटा! हमलोग तुम्हारी सेवा से बहुत संतुष्ट हैं।श्रवण – पिताजी, यह तो हमारा कर्त्तव्य है।

शान्त्वन– हाँ बेटे ! बात तो तुम ठीक कहते हो, किंतु यह सेवा-कार्य अति कठिन है।

श्रवण– कुछ नहीं पिताजी, सेवा करने में हमें बड़ी प्रसन्नता होती है। इसे मैं भार नहीं समझता हूँ।

शान्त्वन– बेटे, हमलोग तीर्थ-यात्रा करना चाहते हैं। तुम्हारी माताजी की भी प्रबल इच्छा है।

श्रवण– पिताजी, ठीक है। आप लोगों की इच्छा मैं अवश्य पूरी करूँगा।

शान्त्वन– किंतु बेटे, हम दोनों अंधे हैं और कमजोर भी हैं। हमलोग कैसे चलेंगे ?

श्रवण– हम काँवर में बैठाकर आप लोगों को ले चलेंगे।

शान्त्वन– धन्य हो बेटे ! तुम्हारे जैसा पुत्र पाकर किस पिता की छाती गर्व से फूल नहीं उठेगी !

श्रवण– अच्छा, हम काँवर ला रहे हैं। माताजी, आप भी तैयार हो जायँ।

नेपथ्य से :(श्रवण कुमार काँवर लाता है। उसमें एक ओर पिता को और दूसरी ओर माता को बैठा लेता है। काँवर को अपने कंधे पर रखकर तीर्थ यात्रा के लिए चल देता है। वह माता-पिता को काशी का तीर्थ कराकर वापस लौट रहा है। वह एक वन में पहुँचता है।)

शान्त्वन– बेटे! हम भी प्यासे हैं और तुम्हारी माताजी भी प्यासी हैं। बड़ी तेज प्यास लगी। रुककर हमलोगों को जल पिला दो।है।

श्रवण– बहुत अच्छा, पिताजी।

नेपथ्य से :(श्रवण काँवर उतार देता है। घड़ा लेकर जल की तलाश में दूर निकल जाता है। सरयू नदी मिलती है।)

श्रवण– ओह, वह नदी है! यहाँ से तो पीने का जल प्राप्त हो सकता है। चलूँ, जल्दी सेजल लेकर माता-पिता को पिलाऊँ।

नेपथ्य से :(श्रवण कुमार घड़े को नदी में डुबोता है। उसमें से हवा के निकलने से पानी के बुलबुले से आवाज होती है। उधर माता-पिता शोकाकुल हैं।)

माता-पिता– (आह भरे शब्दों में) अभी तक बेटा नहीं आया। हमलोग प्यास से व्याकुल हैं। प्राण निकला जा रहा है। क्या बात है।

मालूम होता है कि नजदीक में जल नहीं मिला। तो फिर उसे इस वन में रात्रि के समय इतनी दूर जाने की क्या आवश्यकता थी।

हमलोग तो अपने जीवन के अंतिम चरण में पदार्पण कर चुके हैं। हमलोग तीर्थ-यात्रा भी कर चुके हैं। हमलोग इस संसार में रहें या न रहें, क्या फर्क पड़ता है ?

किंतु उसे तो अपना ध्यान रखना चाहिए। इस तरह प्राण हथेली पर रखकर कार्य करना ठीक नहीं। ईश्वर उसकी रक्षा करे।

नेपथ्य से :(उधर महाराज दशरथ शिकार के लिए उसी घोर वन में नदी के किनारे घूम रहे थे जहाँ श्रवण पानी ले रहा था।)

महाराज दशरथ– (स्वतः) यह कैसी आवाज! मालूम होता है कि इस घोर रात्रि में कोई हाथी जल पी रहा है। क्यों न इसका शिकार किया जाय?

नेपथ्य से :(महाराज दशरथ धनुष पर शब्दवेधी वाण चढ़ाकर छोड़ते हैं। वह वाण जाकर श्रवण की छातीमें लगा।)

श्रवण– हाय! मैं मारा गया। हे विधे! मैंने तो किसी का भी कोई अपराध नहीं किया था,फिर किसने मुझे मारा ? हाय ! मेरे माता-पिता भी जल के लिए मेरी बाट देख रहे होंगे।

नेपथ्य से :(महाराज दशरथ के कान में यह आवाज पड़ी। वह डर गये। घबराये हुए श्रवण के पास पहुँचे।)

महाराज दशरथ– हे मुने! मैं अयोध्या का महाराज दशरथ हूँ। मैंने अनजान में ही यह वाण छोड़ दिया है। आप मेरी रक्षा करें।

श्रवण कुमार- हे नृपश्रेष्ठ ! डरो मत। तुम्हें ब्रह्म-हत्या नहीं लगेगी क्योंकि मैं तपस्या में लगा हुआ एक वैश्य हूँ। मेरे माता-पिता भूख और प्यास से व्याकुल हो मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। इस लिए अब बिना कुछ सोच-विचार किये शीघ्र ही तुम उन्हें जल दे आओ। यदि वे कुपित हो गये तो तुम्हें भस्म कर डालेंगे। उन्हें जल देकर और नमस्कार कर अपना सारा कृत्य सुना देना। मुझे अत्यंत पीड़ा हो रही है। तुम मेरी छाती से वाण निकाल दो, तब मैं प्राण छोडूंगा।

नेपथ्य से :(महाराज दशरथ ने उनके शरीर से वाण निकाल दिया। वाण निकलते ही मुनिकुमार ने प्राण त्याग दिया। जल का घड़ा लेकर महाराज दशरथ उनके माता-पिता के पास पहुँचते हैं। उस समय वे लोग इस तरह व्याकुल हो रहे थे-)

माता-पिता– हम अत्यंत वृद्ध और आँखों से लाचार हैं तथा भूख-प्यास से पीड़ित हैं।क्या कारण है कि रात्रि के समय में हमारा पुत्र अभी तक जल लेकर नहीं लौटा। हमारा और कोई सहारा नहीं है। हम वृद्ध शोचनीय भूख-प्यास से व्याकुल हैं और ऐसी अवस्था में हमारा पितृ-भक्त पुत्र हमारी उपेक्षा कर रहा है।नेपथ्य से :(इसी समय दशरथ के पैरों की आहट उन्हें सुनायी पड़ी।)

पिता- बेटा, आज तुमने इतनी देर कैसे की ? लाओ, शीघ्र ही हमें पवित्र जल पिलाओ और अपनी माताजी को भी पिलाओ।

महाराज दशरथ– (चरणों में प्रणाम करके विनम्रतापूर्वक) मैं आपका पुत्र नहीं हूँ। मैं अयोध्या का महाराज दशरथ हूँ। मैं जल लाया हूँ। पहले आप लोग जल-ग्रहण करें।

शान्त्वन – महाराज दशरथ ! आप यहाँ कैसे ? मेरा बेटा कहाँ है ? आप क्यों जल लेकर आये हैं ? जल्दी बताइए। क्या बात है?

नेपथ्य से :(महाराज दशरथ ने पूरी घटना सुना दी। श्रवण ने जो कुछ कहा था उसे भी विनम्रतापूर्वक बता दिया।)

महाराज दशरथ– अब यह मुनिकुमार-हिंसक आपके पास आया है। आप दोनों बड़े दयावान हैं। मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप मेरी रक्षा करें।

नेपथ्य से:(यह सुनते ही वे दोनों रोते हुए धरती पर गिर पड़े।)

माता-नेपथ्य से :(महाराज दशरथ उन्हें उनके बेटे के पास ले जाते हैं।)

माता-पिता– (विलाप करते हुए) हाय पुत्र ! हाय पुत्र ! यह क्या हुआ ? हमने तुमको क्यों भेजा ? हमलोगों के ऊपर यह विपत्ति क्यों आयी ? भगवन्! हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? अब तो इस संसार में हमलोगों का कोई नहीं है! हाय बेटे ! हाय बेटे !

नेपथ्य से :-पिता- जहाँ हमारा बेटा है वहाँ हमें तुरंत ले चलो।(माता-पिता उन्हें हाथों से स्पर्श करते हुए और जोर से विलाप करने लगे।)

शान्त्वन– बेटा! आज तुम मुझे न तो प्रणाम करते हो और न मुझसे बोलते ही हो। पर क्यों सो रहे हो ? क्या तुम हमसे रूठ गये हो ? माता-बेटा, यदि मैं तुम्हारी प्रिय हूँ, तो तुम अपनी इस धर्मात्मा माता की ओर तो देखो ! तुम मेरे हृदय से क्यों नहीं लग जाते हो? वत्स, कुछ तो बोलो। हाय मेरे प्राण ! अब हम लोग कैसे रहेंगे? तुम धरती।

शान्त्वन– अब मैं मधुर स्वर में किसके मुँह से मनोरम शास्त्र-चर्चा सुना करूँगा ? अब कौन स्नान, संध्यो पासना आदि कराकर मुझ बूढ़े की सेवा करेगा ? अब कौन ऐसा है जो कंद-और फल लाकर मुझे भोजन करायेगा ? बेटा, मैं तुम्हारी इस तपस्विनी माता का भरण-पोषण कैसे करूँगा? पुत्र ठहरो। यमराज के घर न जाओ।

नेपथ्य से :(इस प्रकार वे दीनभाव से विलाप करने लगे। फिर उन्होंने महाराज दशरथ को शाप दिया।)“राजन्! इस समय पुत्र के वियोग में मुझे जैसा कष्ट हो रहा है, ऐसा ही तुम्हें भी होगा।तुम भी पुत्र-शोक से ही काल के गाल में जाओगे। यह मेरा शाप है।”

नेपथ्य से :(वे दोनों अपने शरीरों को जलती हुई चिता में डालकर स्वर्ग को चले गये।)

शांतवान कौन थे उनके पुत्र का क्या नाम था?

एक मुनि थे जिनके बेटे का नाम श्रवण था।

श्रवण कुमार को कब और किसका वार्ड लगा था?

महाराज दशरथ का शब्दवेधी वाण श्रवण को लगा था।

दशरथ कौन थे?

दशरथ अयोध्या के राजा थे।

श्रवण कुमार के माता पिता ने दशरथ को क्या श्राप दिया

क्युकी श्रवण की मृत्यु दशरथ के शब्भेदी बाड़ों से हुआ था।

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