Home ऐतिहासिक कहानियां वीर अभिमन्यु की कहानी (Veer Abhimanyu Story in Hindi)

वीर अभिमन्यु की कहानी (Veer Abhimanyu Story in Hindi)

की कहानी (Veer Abhimanyu Story in Hindi): लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व की बात है। कौरव और पाण्डव चचेरे भाई थे। कौरवों में सबसे बड़ा दुर्योधन था। पाण्डवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर थे। दुर्योधन ने पाण्डवों का राज्य हड़प लिया था। इसलिए दोनों में महा का युद्ध छिड़ गया।

वीर अभिमन्यु की कहानी (Veer Abhimanyu Story in Hindi)

वीर अभिमन्यु की कहानी (Veer Abhimanyu Story in Hindi)

एक दिन की घटना है।

सोलह वर्ष के वीर अभिमन्यु ने युधिष्ठिर के चरण छूकर पूछा “आप इस तरह सोच में क्यों बैठे हैं, महाराज ? युद्ध के क्या समाचार हैं ?

“युधिष्ठिर ने कहा” समाचार अच्छे नहीं हैं बेटा! लेकिन तुम क्यों करते हो ? हमलोग तो हैं ही “मुझे भी बताइए”, अभिमन्यु ने आग्रह किया।

युधिष्ठिर बोले, “यह तो तुम जानते ही हो कि अभी तक हमारी जीत हो रही थी। कौरवों के बहुत से वीर मारे गये हैं। परंतु आज जब अर्जुन यहाँ नहीं है तो कौरवों ने ह की रचना की है और हमें ललकारा है।

अभिमन्यु ने पूछा। ”“तो इसमें चिंता की क्या बात है?

“युधिष्ठिर ने कहा, “तुम नहीं जानते कि चक्रव्यूह का तोड़ना कितना कठिन है। उसमें सेना को चक्करदार घेरे में खड़ा किया जाता है। व्यूह में सात द्वार होते हैं और हर एक द्वार को तोड़ने की एक विशेष विधि होती है। हममें से तुम्हारे पिता अर्जुन के अलावा और कोई चक्रव्यूह तोड़ना नहीं जानता।

”अभिमन्युने कहा।“आप चिंता न करें। मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दें। मैं चक्रव्यूह तोडूंगा”,

” युधिष्ठिर बोले तुम यह क्या कह रहे हो? तुमने चक्रव्यूह तोड़ने की विद्या कब सीखी ?

वीर अभिमन्यु ने उत्तर दिया, “महाराज, एक बार पिताजी ने माँ से चक्रव्यूह तोड़ने का वर्णन किया था। उस समय मैं माँ के पेट में था और मैंने यह वर्णन सुना। चक्रव्यू से निकलना”व्यूह नहीं जानता, क्योंकि जब अंतिम द्वार तोड़ने का वर्णन आया तो माँ को नींद आ गयी और पिताजी ने वर्णन बंद कर दिया था।

“भीम ने गदा हिलाते हुए गरंजकर कहा।“अंतिम द्वार को तो मैं अपनी गदा से ही तोड़ दूँगा”

युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से कहा, “लेकिन तुम अभी बालक हो, हम तुम्हें लड़ाई में कैसे भेज सकते हैं?

”अभिमन्यु ने कहा, “महाराज, मैं भी वीर-पुत्र हूँ। शत्रु ललकारे और मैं बैठा रहूँ! यह कैसे हो सकता है?

“युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को युद्ध में जाने की आज्ञा दे दी।चक्रव्यूह के पहले द्वार पर गुरु द्रोणाचार्य खड़े थे। अभिमन्यु ने दूर से ही उनके चरणों में वाण छोड़कर प्रणाम किया। फिर वाणों की बौछार करता हुआ वह व्यूह के भीतर घुस गया। उसके पीछे भीम और दूसरे पाण्डव वीर भी थे। व्यूह के अगले द्वार पर जयद्रथ था। अभिमन्यु का उससे घोर युद्ध हुआ।

उसे हराकर अभिमन्यु भीतर घुस गया, परंतु जयद्रथ ने अन्य पाण्डव वीरों को भीतर न घुसने दिया। अभिमन्यु अकेला पड़ गया। वह अकेले ही सबसे युद्ध करता रहा। उसके वाणों की वर्षा से कौरवों की सेना के हाथी, घोड़े और पैदल, सब गिरने लगे। वह जिधर भी मुड़ जाता उधर मैदान साफ हो जाता।

वीर अभिमन्यु की वीरता देखकर कौरवों में खलबली मच गयी।

दुर्योधन ने जब देखा कि चक्रव्यूह का अंतिम द्वार भी टूटने वाला है तो उसने ललकार कर कहा, “आप लोग देखते क्या हैं? इसे क्यों नहीं मार डालते ?” यह सुनते ही उस परचारों ओर से वाणों की वर्षा होने लगी। इतने में ही दुःशासन के पुत्र ने पीछे से अभिमन्यु के सिर पर गदा मार दी। वह वीर धरती पर गिर पड़ा और फिर कभी न उठा।

वीर अभिमन्यु की मृत्यु से पाण्डवों की सेना में शोक छा गया।अर्जुन ने लौटकर सब समाचार सुना। उन्हें यह भी मालूम हुआ कि गिरे हुए अभिमन्यु के सिर पर जयद्रथ ने अपना पैर रखा था। उन्होंने प्रकिया कि कल सूर्य डूबने से पहले ही मैं जयद्रथ को अवश्य ही मार डालूँगा, नहीं तो चिता में जलकर मर जाऊँगा।

अर्जुन का यह प्रण सुनकर दूसरे दिन युद्ध में जयद्रथ सेना के बीच में छिपा रहा। बड़ी घमासान लड़ाई हुई। लड़ते-लड़ते शाम होने को आ गयी। अचानक ऐसा लगा कि सूर्य छिप गया। जयद्रथ सामने आ गया। अब वह निश्चिंत था।

सूर्य फिर से चमकने लगा, क्योंकि उसे तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से थोड़ी देर के लिए ढक लिया था। अर्जुन ने एक ही वाण से उसका सिर काट दिया। जयद्रथ मारा गया। पाण्डवों के शंखनादसे आकाश गूँज उठा।

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