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ट्रांसलूनर इंजेक्शन क्या है और चंद्रमा पर लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 में इसका उपयोग कैसे किया जा रहा है?

ठीक 1412 दिन पहले 6-7 सितंबर 2019 को जब चंद्रयान-2 मिशन फेल हुआ था तो तत्कालीन इसरो प्रमुख डॉ. के सिवन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले लगकर फूट-फूटकर रोए थे। यह पूरे देश के लिए एक भावनात्मक क्षण था। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे सालों की मेहनत बेकार चली गई. लेकिन, इसरो ने उम्मीद नहीं खोई और बेहतर और उज्जवल कल की तैयारी के लिए काम करता रहा।

आख़िरकार 14 जुलाई 2023 को इसरो का बाहुबली रॉकेट LVM3-M4, चंद्रयान-3 मिशन मून के लिए रवाना हुआ. चंद्रयान 3 को चंद्रमा की यात्रा पर निकले हुए 19 दिन हो गए हैं। 1 अगस्त, 2023 को आधी रात को चंद्रयान-3 ने पृथ्वी की कक्षा छोड़ दी और चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। इसरो ने 12 बजे से 1 बजे के बीच यान के थ्रस्टर्स चालू किए.

ट्रांसलूनर इंजेक्शन क्या है?

इस प्रक्रिया को ट्रांसलूनर इंजेक्शन यानी टीएलआई कहा जाता है. चंद्रयान वर्तमान में ऐसी अण्डाकार कक्षा में घूम रहा है, जिसकी पृथ्वी से न्यूनतम दूरी 236 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 1 लाख 27 हजार 609 किलोमीटर है। 5 अगस्त को यह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा और 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा।

ट्रांसलूनर इंजेक्शन को सपोर्ट करने के लिए iSRO के वैज्ञानिक कुछ समय के लिए चंद्रयान के इंजन को सक्रिय करेंगे। ट्रांसलूनर इंजेक्शन के लिए चंद्रयान की गति पृथ्वी के पलायन वेग से अधिक होनी चाहिए। पृथ्वी का पलायन वेग 40 हजार 270 किलोमीटर प्रति घंटा है यानी चंद्रयान की गति इससे अधिक होनी चाहिए। जब चंद्रयान पृथ्वी से 236 किमी की दूरी पर होता है तो इंजन चालू हो जाता है।

चंद्रयान वर्तमान में पृथ्वी के चारों ओर 1 किमी/सेकेंड से 10.3 किमी/सेकेंड की गति से चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है। ट्रांस-लूनर इंजेक्शन प्रक्रिया को पूरा होने में 28 से 31 मिनट का समय लगने की उम्मीद है।

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