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Family planning- परिवार नियोजन क्या है और इसकी विधियां क्या क्या है?

परिवार नियोजन (Family planning)- मानव समाज में स्त्री- पुरुष सामाजिक प्राणी है जो एक साथ रहकर परिवारिक जीवन व्यतीत करते हैं और सहज ढंग से संतानउत्पत्ति करते है। मानव जनसंख्या, परिवारों की संख्या और परिवारों के सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती हैं।

family-Planning-Methods

मानव जनसंख्या की वृद्धि दर कम करने अर्थात नियंत्रित करने के लिए परिवारों में संतानोत्पत्ति की दर कम व नियंत्रित करना ही परिवार नियोजन (family planning) कहलाता हैं।समाज में इसकी विस्तृत जागरूकता अति आवश्यक होती हैं। परिवार नियोजन प्रत्येक परिवार में व्यक्तिगत स्तर पर होता है।

अतः प्रत्येक व्यक्ति को परिवार नियोजन (family planning) की सही जानकारी होना आवश्यक है। आज विश्व स्तर पर मानव जनसंख्या में वृद्धि सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा है। अतः परिवार नियोजन का परिपालन भारत जैसे प्रगतिशील देश के लिए अति आवश्यक है।

परिवार नियोजन की वैज्ञानिक विधियां (Scientific Method of Family Planning)

आज के वैज्ञानिक युग में विभिन्न प्रकार के साधनों का प्रयोग परिवार नियोजन (जनसंख्या समिति रखने के लिए) के अंतर्गत किया जाता है। परिवार नियोजन के लिए वर्तमान समय में अनेक विधियां अपनाई जाती हैं। परिवार नियोजन की समस्त विधियों को सफलतापूर्वक समझाने के लिए उन्हें मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है।

[1] आस्थाई विधियां (Temporary method or techniques)

अस्थाई विधियों में निम्नलिखित  विधियां सम्मिलित हैं-

1) व्यवहार संबंधी विधियां(Method related to behaviour): पुरुष द्वारा ब्रह्मचर्य (continence) का पालन करना एक कारगर गर्भ निरोधक विधि /उपाय है। ब्रह्मचर्यय का पालन एक सामान्य प्रक्रिया नहीं है। इसे किसी भी स्तर (सामान्य या व्यापक स्तर) पर सही नहींं कहा जाता हैं, ना ही ऐसा करने का परामर्श दिया जाता है। इसका मूल कारण शरीर क्रिया विज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है, क्योकी एक लंबी अवधि तक ब्रम्हचर्यय का पालन करना नितांत अनुपयुक्त है। अतः सुखद वैवाहिक जीवन के लिए संतोषप्रद लैंगिक यौन संबंधों का होना बहुत जरूरी है।

इसी क्रम में स्त्रियों में ॠतुस्त्राव चक्र के अंतर्गत fertility अलग -अलग  समय पर होती है। स्त्रियों में गर्भाधान (pregnancy) इस चक्र के कुछ निश्चित दिनों में ही संभव होता है और शेष दिनों में उर्वरता का अभाव होता है। अतः गर्भाधान भी  संभव नहीं है। इस अवधि को सुरक्षा काल कहते हैं।

उर्वरता का निर्धारण स्त्रियों में निम्नवत विधियों द्वारा किया जा सकता है-

i) स्त्रियों में गर्भाशय ग्रीवा से स्त्रावित श्लेष्म की जांच द्वारा (By Checking of cervical mucous in ladies) : अंडोत्सर्ग के समय गर्भाशय ग्रीवा से एक सफेद रंग का श्लेष्म, जो अत्यधिक चिपचिपा होता है निकलता है। इस स्त्रावित श्लेष्म की जांच से यह स्पष्ट हो जाता है कि अंडोत्सर्ग हो रहा है और इस समय गर्भधान (pregnancy) की अधिक संभावना है। अतः इन दिनों में यौन संबंध बनाने में अधिक सतर्कता की आवश्यकता होती है।

ii) कैलेंडर विधि द्वारा (By Calender method) : इस विधि में स्त्रियों को आवर्त चक्र की जानकारी होना आवश्यक होता है। इस विधि को सफलतापूर्वक अपनाया जा सकता है। आवर्त चक्र के 8वें दिन से लेकर 19वे दिन तक स्त्रियों में अत्यधिक उर्वरक क्षमता होती है, इस अवधि में असुरक्षित यौन संबंधों से बचना चाहिए, अन्यथा प्रेगनेंसी का डर अधिक होता है।

iii) स्त्रियों के शारीरिक तापमान द्वारा (By body temperature of woman) : स्त्रियों में आवर्त चक्र (menstrual- period) अनियमित होने की स्थिति में परिवार नियोजन (family planning) की यह विधि अधिक उपयुक्त होती है। प्रतिदिन स्त्री के शरीर के तापमान का चार्ट बनाते हैं। इस प्रक्रिया से यह स्पष्ट हो जाता है कि अंडोत्सर्ग के दिनों में स्त्री के शरीर का तापमान सामान्य की अपेक्षा अधिक होता है। अंडोत्सर्ग के दिनों में यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए।

(2) रासायनिक विधियां (Chemical methods):

परिवार नियोजन (family planning) के कुछ प्रभावी रासायनिक विधियां निम्नवत है-

i) जेली एवं क्रीम का प्रयोग (Use of jelly and cream) : रासायनिक गर्भनिरोधक को में जेली एवं क्रीम की अहम भूमिका होती है। जेली एवं क्रीम अर्द्ध ठोस एवं चिकनाई युक्त पदार्थ होते हैं, जो योनि एवं गर्भाशय के द्वार पर फैल कर उन्हें पूरी तरह से चिकना बना देते हैं, फलस्वरूप अंडाणु गर्भाशय में रुक नहीं पाते और सफलतापूर्वक निकल जाते हैं।

ii) डयूश विधि (Duoche method) : इस तकनीक द्वारा अंडाणु को गर्भाशय में प्रवेश से पहले ही रोक लिया जाता है और बाहर निकाल लिया जाता है। परिणामस्वरूप प्रेगनेंसी की संभावना नहीं होती है।

iii) वर्तिका विधि (Suppository method) : इस तकनीक के अंतर्गत एक या एक से अधिक रासायनिक पदार्थों को नारियल के तेल (coconut oil), जिलेटिन (gelatin)  आदि आधारित पदार्थों (base substance) में मिला लेते हैं। सामान्य ताप पर आधारित पदार्थ जम जाते हैं किंतु शरीर के तापक्रम पर यह पिघल कर रासायनिक पदार्थों को अलग कर देते हैं। इस प्रकार निर्मित मिश्रण को वर्तिका कहते हैं।

तैयार वर्तिका को स्त्रियों की योनि में रख दिया जाता है,यहां यह मिश्रण (वर्तिका) पिघल कर स्त्री के गर्भाशय की भित्ति पर इन पदार्थों (रासायनिक पदार्थों) की महिन परत बना देता है। इस प्रक्रिया के पश्चात अंडाणु गर्भाशय में प्रविष्ट होने में असमर्थ होते हैं और प्रेगनेंसी की संभावना नहीं रहती है।

iv) शुक्राणु नाशक का प्रयोग (Use of spermicide) : स्त्रियों के योनि मार्ग में यौन संबंधों से पहले शुक्राणु नाशक पदार्थ को रख देते हैं। इस प्रक्रिया में शुक्राणु नाशक शुक्राणु को नष्ट कर देते हैं।

(3) यांत्रिक विधियां(Mechanical method) :

परिवार नियोजन के कुछ यांत्रिक विधियां निम्नवत है-

i) गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग (Use of contraceptive pills) : गर्भनिरोधक गोलियों में प्रत्येक होली में 50 mg एस्ट्रोजन एवं 1mg प्रोजेस्टेरोन हार्मोन होता है। स्त्रियों को यह गोली आवर्त चक्र के पांचवे दिन या सातवें दिन से प्रारंभ कर 21वे दिन तक सेवन के लिए दी जाती है। स्कूली के प्रभाव से पीयूष ग्रंथि से FSH और LH का स्त्रावण होता है, परिणाम स्वरूप ग्रेफियन पुटिका परिपक्व नहीं होती, इससे ovulation की प्रक्रिया रुक जाती है। यह सरल एवं सर्वाधिक प्रभावी तकनीक है।

ii) क्रमिक गोली का प्रयोग (Use of sequential pills) : इस प्रकार के गर्भ निरोधक गोली में मात्र 50 mg एस्ट्रोजन ही होता हैं। यह गोली ऋतुस्राव प्रारंभ होने के 5वे दिन से 20वें दिन तक स्त्री को लगातार सेवन कराई जाती है।इस तरह की गोली का सामान्य प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इसके दुष्परिणाम की संभावना अधिक रहती है।

iii) निरोध का प्रयोग (Use of Condom): पुरुषों में लैंगिक व्यवहार का सबसे सस्ती और सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली विधि है। नर जननांग पर मैथुन प्रारंभ करने से पहले एक सिंथेटिक रबड़ का निर्मित कोमल एवं चिकना आवरण प्रयोग किया जाता है, जिसे निरोध कहते हैं। निरोध के उपयोग के कारण वीर्य गर्भाशय में नहीं पहुंच पाता है। निरोध के उपयोग से यौन संक्रमित रोगों से भी सुरक्षा होती है।

iv) गर्भ समापन (Abortion): चिकित्सा विज्ञान में गर्भ समापन को एम.टी.पी (medical termination of pregnancy) कहा जाता है। स्त्री-पुरुष (दम्पत्ति) की लापरवाही से किए लैंगिक व्यवहार का परिणाम गर्भाधान (pregnancy) होता है, जिसे दंपत्ति व्यवहारिक रूप से नपसंद करती है, अतः भ्रूण के विकास से पहले गर्भ स्थापित होने के 8 सप्ताह तक गर्भ समापन महिला चिकित्सा की देखरेख में कराया जा सकता है। गर्भ को गर्भाशय से निकाल देना गर्भ समापन(abortion) कहलाता है।

v) अंत:रोपित छड़ का प्रयोग (Use of Implanted rods) : सामान्यता अंत: रोपित छड़ को  इम्प्लानन कहते हैं। यह एक छड़नुमा उपकरण होता है जिसका अंत:रोपण शल्य क्रिया द्वारा त्वचा के नीचे कर दिया जाता है। यह उपकरण शोषण मात्रा में संश्लेषित प्रोजेस्ट्रोन- प्रोजेस्टिन का शरीर में स्त्रावण करता रहता है। जिसके कारण गर्भाशय ग्रीवा से निकलने वाला श्लेष्म(cervical mucus) और भी अधिक गाढ़ा और चिपचिपा हो जाता है।परिणाम स्वरूप शुक्राणु सफलतापूर्वक गति नहीं कर पाते और अंडाणु के साथ समेकित नहीं हो पाते हैं।

(4) परिवार नियोजन की प्राकृतिक विधि (Natural method of family planning)

इसके अंतर्गत स्त्री व पुरुष समझदारी/ विवेक का परिचय देते हुए अपनी परिवार नियोजन की पूरी रूप रूपरेखा मन में तैयार करके उस पर दृढ़तापूर्वक अम्ल करते हैं। इसे अवधि समय के रूप में जाना जाता है। इस विधि में विवाहित स्त्री पुरुष मासिक चक्र के 10वे से 17वे दिन के बीच में मैथुन क्रिया नहीं करते फलस्वरूप स्त्री गर्भधारण नहीं कर पाती।

[2] स्थाई विधि (Permanent method)

बंध्याकरण परिवार नियोजन (family planning) की एक स्थाई विधि है। बंध्याकरण विधि द्वारा पुरुष की शुक्रनलिका को काटकर शल्य क्रिया द्वारा बांध दिया जाता है इसके पश्चात शुक्राणु स्खलन के समय नहीं निकल पाते हैं और शुक्राणु का दारू से निषेचन नहीं हो पाता है इस क्रिया को पुरुष नसबंदी या vasectomy कहते हैं।

महिलाओं की अंडवाहिनियो को काटकर शल्य क्रिया द्वारा बांध दिया जाता है अतः अंडवाहिनी में शुक्राणु अंडाणु का निषेचन नहीं कर पाते हैं इस क्रिया को महिला नसबंदी या tubectomy कहते हैं।

परिवार नियोजन में बाधाएं(Hindrance in Family Planning)

परिवार नियोजन (Family Planning) के कार्यक्रमों को भारत सरकार पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से क्रियान्वित कर रही है। लगातार प्रयास के बाद भी इस कार्यक्रम में सफलता नहीं मिल पा रही है। परिवार नियोजन (family planning) में आने वाले कुछ प्रमुख बाधाएं निमनवत हैं

  • परिवार नियोजन (family planning) की असफलता का प्रमुख कारण रूढ़िवादिता है। रूढ़िवादिता में संतान को ईश्वर की देन समझना और लड़के के जन्म से वंश का नाम चलने की अवधारणा प्रमुख हैं।
  • शिक्षा या यौन शिक्षा की कमी के कारण सामान्य परिवार, परिवार नियोजन (family planning) के महत्व को प्राथमिकता नहीं देता है।
  • अंधविश्वास के कारण सामान्य परिवार, परिवार नियोजन (family planning) कार्यक्रमों को अपनाने में रुचि नहीं लेता है।
  • परिवार नियोजन संबंधी सुविधाओं की उपलब्धता सुचारू रूप से देश के दूरस्थ क्षेत्रों में ना पहुंचना भी परिवार नियोजन के सफलता का एक कारण है।

जन्म नियंत्रण में महत्वपूर्ण उपाय(Important Method of Birth Control)

जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने में लघु परिवार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अनेक गर्भनिरोधक उपायों को अपनाया जाना एक सरल एवं सुचारु प्रावधान है इन उपायों का प्रचार प्रसार संचार माध्यमों से भी किया जाता है। और सामाजिक हित में इन उपायों का प्रयोग करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता है। शुरुआत में परिवार नियोजन के लिए “हम दो हमारे दो” का नारा प्रचलित हुआ इसके बाद शिक्षित जोड़ों ने “हम दो हमारे एक” का नारा प्रचलित किया।

जन्म नियंत्रण अर्थात गर्भनिरोध की विधियां निमनवत है-

  1. मुंह से सेवन योग्य गर्भनिरोधक दवाये।
  2. टीकाकरण एवं अंत:काय विधि।
  3. copper-t का प्रयोग ।
  4. रोध या बैरियर विधि।
  5. परंपरागत तथा प्राकृतिक विधि।
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