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नींबू के रोग और हानिकारक कीड़ों की दवा

खेती और किसानी की इस जानकारी में आज हम बात करने वाले नींबू के बारे में नींबू के रोग। यदि आप पर नींबू की खेती करना चाहते हैं तो उसके लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए नींबू कैसे तैयार किया जाता है और नींबू में होने वाले प्रमुख रोग और उनके उपाय के बारे में हम बताएंगे।

यदि आप नींबू की खेती कर रहे हैं तो उसमें किसी भी प्रकार के रोग की समस्या और उसमें लगने वाले कीड़े यदि नींबू के रोग पौधे को परेशान कर रहे हैं तो उनके लिए क्या दवाइयां दी जाए किस दवा का छिड़काव किया जाए इन सभी बातों को आज हम इस जानकारी में जाने गए।

नींबू के रोग और उस में लगने वाले कीड़ों की दवाइयां

नींबू के हानिकारक कीट और दवाएं

1.लीफ माइनर (पत्ती बेधक)

यह कीट छोटे पौधों से बड़े पौधों की पत्तियों में सुरंग बनाता हुआ फैलता है प्रभावित पौधों की पत्तियां किनारे से अंदर की ओर मुड़ने रखते हैं सूख जाती है यदि कीट का प्रकोप छोटे पौधों की कोमल पत्तों पर होता है तो डाईबेक रोग का कारण होता है एक एक कर कर के फैलने में सहायक होता है इस कीट का प्रकोप जुलाई अक्टूबर माह में वर्षा के समय उसके बाद 3 मार्च के महीने में अधिक होता है।

नींबू-में-चेपा-और-मिली-रोग

बचाओ प्रबंधन

नई पत्तियों के खुलने के समय एसफेट 75 एस.पी. 2.0 थायोमेथोकजम  25 W पी. 0.75 ग्राम या डाईमेथोएट 1.5 मिली प्रति लीटर इधर से पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए पौधशाला में किटग्रस्त पत्तियों को काटकर नष्ट कर देना चाहिए।

2.सिट्रस सिला (स्केल किट)

यह वृक्षों की कोमल शाखाएं पत्तों और कलियों के रस का शोषण करते हैं इसके फलस्वरूप नए पत्तियां और कलियां अधिक मात्रा में गिरने लगती हैं छोटे की चाहत जैसा सफेद चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ते हैं जिन पर बाद में काली फफूंदी का प्रकोप शुरू होता है गिनीज नामक अत्यंत हानिकारक बीमारी के फैलाव में सिला आम भूमिका निभाता है।

नींबू-में-स्केल-किट-की-दवा

बचाव व प्रबंधन

कलियों के बनते समय या नए बाहर के समय जनवरी-फरवरी जून-जुलाई और अक्टूबर-नवंबर में इनकी कीटो का प्रभाव अधिक दिखाई देते हैं तो ऐसीफिट 2 ग्राम या डिमेथोएट 8 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। या पैराथियान 0.03% इमल्सन का स्प्रे भी कर सकते है। मीठी नीम का पौधा बगीचे के आसपास नहीं लगाना चाहिए क्योंकि यह परजीवी शिला की दो के प्रजनन कार्य के लिए सहायक होता है।

3.पत्ते खाने वाले इल्ली (सुरंगी किट)

संतरे और नींबू के वृक्षों पर इन कीटों का प्रभाव वर्ष पर दिखाई देता है इस कीट का लारवा अवस्था नए पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है जिसके कारण वे जल्दी ही पति विहीन हो जाते हैं।

बचाओ रोकथाम प्रबंधन

इन खेलों का नियंत्रण एसीफेट 75 एचपी 2.0 ग्राम का प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। एंडोक्सवार्क 8 ई. सी. 0.75 मिली का 1 लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से स्केट की रोकथाम होती है।

4.परण सुरंगी किट

इस चीज की जोड़ी नई पत्तियों में भूलकर उनमें टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाती हैं जिससे पौधे की ओज वा बढ़ाकर प्रभावित होती है। तथा पौधों की भरत भी मारी जाती है इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 40 ई. सी. 1 मिली प्रति लीटर पानी या डेल्टामिश्रण 2.8 ई. सी. 5 मिली प्रति 10 लीटर का 20 दिन के अंतर में दो बार छिड़काव करना चाहिए।

5.नींबू की तितली

इस तितली की चूड़ी वाली अवस्था ही हानिकारक होती है जो पत्तियों को खाकर पौधों को नुकसान पहुंचाती है इसका पोर्न चमकीले रंग की बड़ी तितली होती है 1 वर्ष में इस कीट की तीन से 5 पीढ़ियां पाई जाती है तथा यह सितंबर माह में अधिक सक्रिय होती है इसकी रोकथाम के लिए बीटी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या एंडोसल्फान 35 ई. सी. की 2 मिली दवा प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

नींबू के पत्ते खाने वाले सुरंगी कीट की रोकथाम

6.थ्रिप्स (सिट्रस सिल्ला)

इसमें शिशु और पॉड कीड़े पत्ती, कलियों और फलों के रस का शोषण करते हैं पत्तियां अर्ध गोलाकार मुड़ जाती हैं।

नींबू-के-सिट्रस-सिल्ला-की-दवा

उपाय बचाओ प्रबंधन

पति के मुरझाने की स्थिति में कली फूटने की अवस्था में छोटे फलों और नीचे जमीन पर आसपास की घास पर फिप्रोनिल 5 ई. सी. 20 मिली या थायोमैथएग्जाम 25 मिली डब्लू.जी. 0.75 ग्राम को प्रति लीटर पानी में डालकर छिड़काव करना चाहिए।

नींबू में होने वाले रोग

1.नींबू के फूल एवं फलों का गिरना

नींबू वर्गीय फलों में फूल मुख्य रूप से बसंत ऋतु में फरवरी-मार्च मिश्रित कली पर आते हैं परंतु नींबू की खट्टी प्रजातियों में फूल लगभग पूरे वर्ष आते रहते हैं निंबू वर्गीय फलों में फल झरने गिरने की समस्या पाई जाती है पौधों पर 2-4D का 8 पी.पी.एम, एन,ए का 30 पी.पी.एम तथा जी.ए 3का 30 पी.पी.एम का छिड़काव करना फल लड़ने से रोका जा सकता है।

2.फलों का फटना

फलों के फटने की समस्या मुख्य रूप से नींबू तथा माल्टा में पाई जाती है फल पर आया उस समय पढ़ते हैं जब शुष्क मौसम में अचानक वातावरण में आर्द्रता आ जाती है गर्मी में बरसात होने से फलों के फटने की समस्या बढ़ जाती है इस समस्या की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करनी चाहिए इसके अतिरिक्त पौधों पर 10 पीपीएम जीवरेलिक अमृत का छिड़काव करने से फलों के फटने की समस्या काफी कम की जा सकती है।

3. गामोसिस

गमोसिस पत्ते पीले पड़ जाते हैं पेड़ की शाखाओं का सूखना जड़ों का सूखना ज्यादा फल आना हुआ पकने से पहले पीले होकर गिरना पेड़ों के तने में गोल जैसा लस लस आ पदार्थ निकलना।

उपचार– जल निकासी की समुचित व्यवस्था साल में तीन बार जून अक्टूबर व जनवरी माह में पेड़ों के तनों में गोंद को खोज कर बोलो पेस्ट का लेप करना चाहिए रोग के लक्षण दिखाई देते हैं कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी अथवा कॉपर हाइड्रोक ऑक्सिक्लोराइड 70 डब्ल्यूपी 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

4. कैंकर रोग (सिट्रस का कोढ़ रोग)

इस रोग के कारण ब्रिज की शाखाओं पत्तों एवं फलों पर गहरे काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं वर्षा के समय अधिक नमी के होने से इस रोग का उग्र रूप दिखाई देता है रोग युक्त फलों को बाजार में सही कीमत नहीं मिल पाता।

नींबू-काले-काले-धब्बे-होना

उपचार- इससे प्रभावित शाखाओं को काट कर रोका जा सकता है बॉडीऑक्स 1% स्प्रे एक्यूएस घोल 550 पी पी एम स्ट्रप्टोमायसीन सल्फेट भी सिट्रस कैंकर को रोकने के लिए उपयोगी है।

5.सिट्रस माइट

फलों का पत्तों के रस का शोषण कर लेते हैं पत्तों पर धूल जमा होने के कारण धूल का भूरा भाग दिखाई देता है। जिसके कारण पत्तों पर हल्के गोलाकार निशान पढ़ते हैं जब हरे फल पकने लगते हैं और फूलों का रंग पीला होने लगता है तो फल खराब हो जाता ह।

बचाओ प्रबंधन उपाय

सिट्रस माइट का प्रकोप दिखाई देते ही राइफल 18.5 ईसी 1.5 से 2.0 घुलनशील सल्फर 80% ,2.5 ग्राम का प्रति लीटर की लीटर पाने की दर को घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

6.नींबू में गुदीया रोग

वृक्ष की छाल में खून निकलना इस बीमारी के लक्षण है प्रभावित पौधा हल्के पीले रंग के रंग में बदल जाता है तने और पत्ते की सतह पर गोद की सख्त परत बन जाती है कई बार छाल करने से नष्ट हो सकती है और बीच मर जाता है। पौधा फल के परिपक्व होने से पहले ही मर जाता है।

नींबू-में-गुदीय-रोग

इस बीमारी को जड़ गलन भी कहा जाता है जड़ गलन की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना जल निकास का अच्छे से प्रबंध करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

बचाव और दावा

पौधे को नुकसान से बचाना चाहिए मिट्टी में 0.2 परसेंट मेटालैक्सिल MZ 72 + 0.5% ट्राइकोडरमा विराइड डालें इससे इस बीमारी को रोकने में मदद मिलती है वर्ष में एक बार जमीनी स्तर से 50 से 75 सेंटीमीटर ऊंचाई पर बार्डियोक्स  को जरुर डालना चाहिए।

7.नींबू के पत्तों पर धब्बा रोग

पौधे के ऊपरी भागों पर सफेद रूई जैसे धब्बे रोग देखे जाते हैं पत्ते हल्के पीले और मुड़ जाते हैं पत्तों पर विकृत लाइनें दिखाई देती है पत्तों की ऊपरी सतह ज्यादा प्रभावित होती है नए फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं उपज कम हो जाती है।

नींबू-के-पत्तों-पर-फफूदी-सफेद-दाग

रोकथाम और दवाएं

पत्तों के ऊपरी धब्बे रोग को रोकने के लिए पौधे के प्रभावित लोगों को निकाल दें। और नष्ट कर दें कार्बेंडाजिम की 20-22 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

8.नींबू में काले धब्बे

काले धब्बे एक फंगस वाली बीमारी है फलों पर काले धब्बे को देखा जा सकता है बसंत के शुरू में हरे पत्तों पर स्प्रे करने से काले धब्बों से पौधों की बचाया जा सकता है इसे 6 सप्ताह के बाद दोबारा दोहराना चाहिए।

नींबू-में-काले-काले-दाग

9.नींबू में जिंक की कमी

यह सिट्रस के वृक्ष में बहुत सामान्य कमी है इसे पत्तों की मध्य नाड़ी और शिराओं में पीले भाग के रूप में देखा जा सकता है जड़ का गला और शाखाओं का जालीदार होना आम देखा जा सकता है फल पीला लंबा और आकार में छोटा हो जाता है।

नींबू-में-जिंक-की-कमी

सिट्रस के वृक्ष में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए खादों की उचित मात्रा दी जाती है जिंक सल्फेट को 10 लीटर पानी में दो चम्मच मिलाकर दिया जा सकता है इसकी स्प्रे पूरे ब्रिज शाखाओं और हरे पत्तों पर की जा सकती हैं।

10.नींबू में आयरन की कमी

नींबू-में-आयरन-की-कमी

नए पत्तों का पीले हरे रंग में बदलना आयरन की कमी के लक्षण हैं पौधे को आयरन के लिए दिया जाना चाहिए गाय और बहन की खाद द्वारा भी पौधे क्यों आयरन की कमी से बचाया जा सकता है या कमी ज्यादातर क्षारीय मिट्टी के कारण होता है।

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