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मृदा अपरदन व संरक्षण क्या हैं कैसे होता है (What is soil erosion and conservation)

मृदा अपरदन व संरक्षण– हमारे चारों ओर तरह-तरह के पेड़ पौधे व घास है बिना मृदा के इसका अस्तित्व संभव नहीं है। मेरा भी प्रकार के तत्वों का मिश्रण है, जैसे प्रदीप चट्टानी खनिज पदार्थ तथा जीवित प्राणियों के अवशेष इत्यादि यह सभी तत्व पशुओं की क्रियाओं प्रतिक्रियाओ पौधों की जड़ों के दबाव तथा भूमिगत जल के प्रवाह के माध्यम से मिश्रित होते रहते हैं।

मृदा-अपरदन-व-संरक्षण-क्या-है

मृदा की उत्पत्ति मृदा का प्रकार तथा इसका रसायनिक विघटन इसके लिए अति आवश्यक है। अधिकतर स्थानों पर मृदा अलग-अलग प्रकार की होती है, जो मुख्य था चट्टानों पर निर्भर करती है।

मृदा अपरदन व संरक्षण क्या है मृदा अपरदन होने से कैसे बचाएं

मृदा की परतें

मृदा की परतें तीन प्रकार की होती हैं ?

  1. ऊपरी मृदा
  2. उप मृदा
  3. चट्टाने

1.ऊपरी मृदा

मृदा की सबसे ऊपरी परत को ऊपरी मृदा कहते हैं क्या गहरी काली बाबू बुरी होती है। इस मृदा में जीवाश्म मिले होते हैं।

इसलिए इसका रंग गहरा काला होता है जी वास में जियो तथा वनस्पतियों के अपघटन से बनते हैं। इस मृदा में वनस्पति भली-भांति पनपती है। क्योंकि यह मृदा काफी पोषक होती है।

2.उप मृदा

ऊपरी परत के नीचे वाली परत उप मृदा कहलाती है। यह प्रथा हल्के रंग की तथा कठोर होती है इसमें बरस पत्तियां नहीं रुक सकते हैं।

3.चट्टाने

मिला की तीसरी पर बहुत कठोर होती है यह चट्टानों से बनी होती है यह परत बिल्कुल भी उपजाऊ नहीं होती है।

मृदा अपरदन क्या है

पृथ्वी का वातावरण हमेशा बदलता रहता है जब हवा तेजी से बहती है तो अपने साथ मिट्टी के कण उड़ा ले जाती है जब हवा धीमी होती है तो मिट्टी के कण वहीं पर गिर जाते हैं यह बहुत अधिक दूरी पर होता है।

मृदा के अपवर्तन के मुख्य कारण जल्द तथा वायु है। इसी प्रकार वर्षा का जल बहाव नदियां झरने इत्यादि भी मृदा की ऊपरी परत को बहाकर ले जाते हैं।

इस तरह मृदा की ऊपरी परत का चरण मृदा अपरदन कहलाता है मृदा अपरदन वनस्पतियों के लिए हानिकारक है क्योंकि मृदा अपरदन से भूमि उपजाऊ नहीं रहती।

जल द्वारा मृदा का अपरदन

जब वर्षा की भूमि जमीन पर पड़ती है तो वह मिट्टी के कणों को अलग कर देती है, फिर ऊपरी परत आसानी से जल के बहाव के साथ बहने लगती है। यदि मिट्टी परिवर्तित पर्वतीय क्षेत्रों में है।

तो यह जल के साथ आसानी से बेहतर नीचे आ जाती है जल के साथ मिट्टी के बहाव से ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक परत ऊपर से उतार ली गई है यह क्रिया ही अपरदन कहलाती है कुछ जगहों पर मिट्टी का कटान आसमान रूप से होता है।

वायु द्वारा मृदा का अपरदन

जब तेज हवा चलती है तो यह अपने साथ मिट्टी की ऊपरी परत को भी उड़ा कर ले जाती है ऊपरी परत बस पत्तियों के लिए लाभदायक होती हैं क्योंकि अपरदन के कारण पौधों की जड़ों से मिट्टी हट जाती है इसलिए पहुंचे निर्जीव हो जाते हैं।

रेगिस्तान में बहुत अधिक रेत वायु के साथ उड़ती है क्योंकि यहां पेड़ पौधे बहुत कम होते हैं। अतः यहां मिट्टी के कणों को कसकर या बांध कर रखने वाली जाने नहीं होती हैं। और ना ही नमी होती है। अतः तेज हवाओं के साथ भूरी मिट्टी के कण आसानी से उड़ने लगते हैं।

मृदा संरक्षण क्या है?

मृदा संरक्षण

मिट्टी की ऊपरी परत बनने में कई वर्ष लगते हैं। अतः इसे बचाना व सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। मृदा अपरदन को रोकने ही मृदा संरक्षण कहलाता है इसके अलावा कुछ अन्य उपाय हैं जो मृदा अपरदन को रोक सकते हैं।

वृक्षारोपण

पौधों से भरी हुई जमीन की अपेक्षा खाली जमीन पर मृदा अपरदन अधिक होती है। घास या पौधों की जड़ों मृदा के कणों को आपस में मजबूती से जुड़े रखते हैं। पर मृतक कणों को पानी के साथ बहने से रोकती हैं।

वह मृदा कंकारो को हवा के साथ उड़ने से भी रोकती हैं। पौधे हवा के वेग को तथा जल के बहाव की गति को कम कर देती हैं। इसलिए किसान अपने खेतों में फसलों की जड़ों के ठूठ छोड़ देते हैं ताकि मृदा अपरदन कम हो।

वायु अवरोधक

वायु अवरोधक वायु की गति को कम करते हैं। वही अवरोधक झाड़ियों तथा पौधों को लगाकर बनाए जाते हैं। पराया जिधर से हवा अधिक चलती है उस तरफ की झाड़ियां तथा बीच की ओर मुझे पेड़ लगाए जाते हैं।

इस प्रकार पेड़ लगाने से हवा का वेग कम हो जाता है जिससे मिट्टी का मूर्ति है। इस तरह वायु अवरोधक की सहायता से मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

सीढ़ीदार खेत

पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि को काटकर जिम्मेदार खेत बनाए जाते हैं। वह जल बहाव की गति को कम करते हैं जिससे मिट्टी का बहाव भी रुक जाता है। तथा मृदा अपरदन भी बहुत कम हो जाता है। यहां वृक्ष तथा झाड़ियां उगकर भी मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।

बांध बनाना

मृदा अपरदन को खेत के चारों ओर बांध बनाकर भी रोका जा सकता है। इससे मिट्टी वह कर कहीं नहीं जा पाती वर्षा काल में अधिकतर नदियों में बाढ़ आ जाती है और आसपास के क्षेत्रों में फसलों तथा जीव जंतुओं को बहुत नुकसान होता है बांध बनाने से बाढ़ नहीं आती तथा उस क्षेत्र की मृदा मैं कर नहीं जाती।

मृदा संरक्षण की आवश्यकता कब और क्यों होती है

मृदा का निर्माण अत्यंत धीमी प्रक्रिया से होता है और 1 सेंटीमीटर की ऊपरी परत के निर्माण में कई वर्ष लग जाते हैं। जबकि मृदा अपरदन अत्यधिक तीव्र प्रक्रिया से होता है तेज बारिश से ऊपरी परत बहुत जल्द ही बह जाती है।

पश्चिम बंगाल में दामोदर नदी तथा बिहार में कोसी नदी फसलों तथा जानमाल को हर वर्ष बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इन कारणों से अन्य व सब्जियों की पैदावार घट जाती है। इसलिए दामोदर नदी को पश्चिम बंगाल का तथा कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है।

हमारे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। खाद्यान्न वस्तुओं की पैदावार उतनी नहीं है जितनी हमारा देश को आवश्यकता है। खाद्यान्न वस्तुओं की पैदावार बढ़ाने के लिए मैदा का संरक्षण आवश्यक है। अतः देश के हित को ध्यान में रखते हुए मृदा अपरदन रुकना हमारा कर्तव्य है।

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