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Pollution क्या है प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं?

प्रदूषण (pollution)- वायु, जल, मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाले परिवर्तन को जो मानव-जीवन उसके, रहन-सहन तथा अन्य जीवो पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, प्रदूषण कहलाते हैं। प्रदूषण करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहते हैं।

प्रदूषण-क्या-है

प्रदूषण के प्रकार (Types of pollution)

  1. जल प्रदूषण
  2. वायु प्रदूषण
  3. मृदा प्रदूषण
  4. ध्वनि प्रदूषण
  5. रेडियोधर्मी प्रदूषण

जल प्रदूषण (Water pollution)

जनसंख्या में तेजी से वृद्धि तथा औद्योगिकरण नदियों के जल में अनावश्यक पदार्थों के बढ़ने से जल प्रदूषित हो रहा है।

जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water pollution)

घरेलू कूड़ा करकट एवं वाहित मल जलाशयों व नदियों में पहुंचकर जल को प्रदूषित कर देता है।

कल कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में छोड़ने के कारण जल प्रदूषित हो जाता है इस जल में पारे तथा शीशे के विषैले योगिक होते हैं।

फसलों पर छिड़के गए कीटनाशक पदार्थ जैसे डी.डी.टी. आदि वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों के जल को दूषित कर देता है।

कच्चे तेल व खनिज तेल के रिसाव से समुद्र का जल दूषित हो जाता है।

घरों व मकानों की सफाई व बर्तन साफ करने के लिए सर्फ, विम आदि तथा नदी का तालाब के समीप नहाने व कपड़े धोने से जल दूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव (Effects of Water pollution)

वाहित मल द्वारा जल के दूषित होने पर पीलिया, टाइफाइड, हैजा, क्षय, पेचिश, डायरिया आदि रोग हो जाते हैं।

कल- कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों में अनेक विषैले पदार्थ होते हैं जिनसे जल विषैला हो जाता है तथा जलीय जीव जंतु मर जाते हैं।

वर्षा के जल में खुलकर कीटनाशक पदार्थ नदियों के जल को दूषित कर देते हैं जिनसे जलीय जीव नष्ट हो जाते हैं।

प्रदूषित जल खेती योग्य भूमि को भी नष्ट कर देता है।

जल के तापमान में परिवर्तन का जीवो पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण के नियंत्रण के साधन (Control Measures of Water pollution)

  • औद्योगिक अपशिष्ट एवं अन्य विषैले पदार्थ को जलाशयों में जाने से रोकना चाहिए।
  • बड़े औद्योगिक कारखानों को नदियों के किनारे स्थापित नहीं करना चाहिए।
  • नदियों के किनारों पर बर्तन एवं कपड़े नहीं धोने चाहिए।
  • नदियों तथा तालाबों में पशुओं को नहलाने एवं वनों को धोने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • कृषि कार्य में आवश्यकता से अधिक उर्वरकों व कीटनाशक पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • प्रदूषित जलाशयों की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिए।
  • पेट्रोलियम पदार्थों को जहाजों से सावधानीपूर्वक खाली करें जिससे वे समुद्र में ना गिरे।
  • शहरों के अपशिष्ट पदार्थों को सीधे नदिया जलाशयों में ना छोड़कर उन्हें पहले उपचारित कर के दोष रहित बना कर ही नदियों में छोड़ना चाहिए।

वायु प्रदूषण (Air pollution)

सभी जीव जंतु स्वसन में वायु का उपभोग करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं।  अतः स्वच्छ  वायु का होना सभी जीवो के लिए आवश्यक है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैस से एक निश्चित मात्रा व अनुपात में होती हैं। किसी कारणवश इनकी मात्रा एवं अनुपात में परिवर्तन होने पर इसे वायु प्रदूषण कहते हैं।

वायु प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Air pollution)

कल- कारखानों, ताप बिजली घरों, वायुयान, मोटर वाहन, ट्रक, स्कूटर डीजल इंजन, कोयला जलाने वाली भट्टियों, लकड़ी का कोयला एवं तेल आदि के जलने से निकलने वाला धुआं, कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर व नाइट्रोजन के ऑक्साइड, धूल व ठोस पदार्थों के कण तथा विषय कार्बनिक पदार्थ आदि।

रासायनिक व पेट्रोल साफ करने वाले कारखानों, उर्वरक, सीमेंट, चीनी मिट्टी, कांच व कागज बनाने के कारखानों से निकले गंधक के अम्ल हाइड्रोजन सल्फाइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक ऑक्साइड, शीशा व पारे के कण आदि।

वृक्षों को काटने से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि तथा ऑक्सीजन की कमी से।

परमाण्विक विस्फोटों के कारण वायुमंडल में रेडियोधर्मी पदार्थों की वृद्धि।

वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air pollution)

मोटर गाड़ियों से निकले धुएं में बिना जली हाइड्रोकार्बन गैसे व नाइट्रिक ऑक्साइड मिलकर स्मॉग बनाते हैं इससे आंखों से पानी निकलने लगता है तथा सांस लेने में कठिनाई होती है।

सल्फर डाइऑक्साइड की 0.8-1ppm सांद्रता बहुत हानिकारक सिद्ध होती है।

SO2 से पक्षियों व पशुओं को नुकसान पहुंचता है तथा हमारी ऐतिहासिक इमारतें जैसे ताजमहल क्षीण होती है।

कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के थकावट, मानसिक विकार तथा फेफड़ों में कैंसर हो जाता है।

नाइट्रस ऑक्साइड से फेफड़ों, आंखों, व ह्रदय के रोग हो जाते हैं।

कैडमियम विश का कार्य करता है।

धुल व कार्बन के कण पत्ती पर जमा होकर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बंद करते हैं।

वायु प्रदूषण से पौधे और जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय (Control Measures of Air pollution)

  • घरों में धुआं रहित ईंधन, जैसे कुकिंग गैस, सौर ऊर्जा आदि के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • पेट्रोल से सीसा (lead) जैसे विषैले पदार्थ को निकालकर प्रयोग करना चाहिए।
  • कारखानों को शहर से दूर लगाना चाहिए।
  • वृक्षारोपण द्वारा अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
  • बालों को काटने पर रोक लगाना चाहिए।

मृदा प्रदूषण ( Soil pollution)

मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत बनाती है। पौधों के लिए मृदा अत्यधिक आवश्यक है क्योंकि पौधे मृदा से जल खनिज लवण आदि प्राप्त करते हैं। मृदा के प्रदूषण से इस में रहने वाले जीव -जंतु पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

मृदा प्रदूषण के स्त्रोत ( Sources of Soil pollution)

घरों के कूड़ा करकट तथा अपशिष्ट पदार्थों से मृदा प्रदूषण होती हैं।

उर्वरक तथा कीटनाशक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से मृदा प्रदूषण होता है।

कारखानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ मृदा को प्रदूषित करते हैं।

पॉलिथीन की थैलियां, कागज, सड़ा हुआ भोजन, शीशा तांबा, पारा, आदि मृदा को प्रदूषित करते हैं।

खुले स्थानों पर मल विसर्जन से भी मृदा प्रदूषण होता है।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil pollution)

मृदा अपरदन से बाढ़ व सूखे की संभावना बनी रहती है।

मृदा प्रदूषण के कारण फसल उत्पादन कम होता है।

मृदा प्रदूषण का नियंत्रण ( Control of Soil pollution)

  • मृत जंतु तथा घरों के कूड़े- करकट को बस्ती से  दूर गड्ढों में रखकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
  • खेतों में विषैली दवाओं का छिड़काव कम से कम करना चाहिए।
  • पेड़ पौधों तथा वनों के कटाव को रोकने चाहिए।
  • मृदा के अपरदन को रोकने के लिए घास तथा छोटे पौधे लगाना चाहिए।
  • गांव में गोबर गैस संयंत्र लगाना चाहिए।
  • टिन, एलुमिनियम, लोहा, कांच आदि ठोस पदार्थों को मृदा में नहीं दबाना चाहिए। इनको गला कर पुनः उपयोग में लाना चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण (Noise pollution)

अवांछित ध्वनि को शोर कहते हैं। सोर ध्वनि का बारूद है जिसे जीवधारी सहन नहीं कर पाते शोर की तीव्रता बेल(bel) में मापी जाती है।(1डेसीबेल=1/10 बेल)।

विभिन्न प्रकार की ध्वनियां अलग-अलग डेसीबल तीव्रता की होती है। शांत वातावरण पर ध्वनि की तीव्रता 30 डेसीबल तक होती है। कमरे में वार्तालाप के समय ध्वनि की तीव्रता 60 डेसीबल तक होती है। इससे अधिक डेसिबल की ध्वनि को शोर कहते हैं। स्कूटर, ट्रक आदि 90 डेसिबल की डेसिबल की ध्वनि उत्पन्न करते हैं।

रेडियो टेलीविजन कपड़े धोने की मशीन आदि 75 डेसिबल से 120 डेसिबल तक की ध्वनि उत्पन्न करते है। जेट वायुयान 150 डेसिमल की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। 80 डेसिबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि को शोर कहते हैं। इससे बेचैनी व अस्वस्थता उत्पन्न होती है। 0-1 डेसिबल की बीच की ध्वनि सबसे कम तीव्रता की होती है। इसी मनुष्य सुन सकता है। 20- 30 डेसिबल की तीव्रता पर मनुष्य कानाफूसी करता है तथा 60 डेसीबल पर वह बातचीत करता है।

ध्वनि की स्त्रोत (Sources of Noise pollution)

लाउडस्पीकर, विमान, रेल गाड़ी, डीजल व पेट्रोल से चलने वाले इंजन कार, ट्रक, स्कूटर, जेट विमान आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Noise pollution)

तीव्र ध्वनि से श्रवण शक्ति कम हो जाती है

तीव्र ध्वनि से नींद नहीं आती तथा मनुष्य के स्वभाव में उत्तेजना एवं आक्रोश उत्पन्न हो जाता है।

तीव्र ध्वनि हृदय मस्तिष्क एवं यकृत को हानि पहुंचाती है।

तीव्र ध्वनि से दीवारों में दरारें पड़ जाती है।

ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण (Control of Noise pollution)

  • ऐसी मशीनों का निर्माण जिनमें से कम से कम ध्वनि उत्पन्न हो।
  • अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाली मशीनों को ध्वनिरोधी कमरों में लगाना चाहिए।
  • कारखाना में काम करने वाले कर्मचारियों को काम में भी लगानी चाहिए।
  • लाउडस्पीकर का स्वचालित वाहनों द्वारा होली के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • सड़कों के किनारे पर वृक्ष लगाने चाहिए।
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